बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- प्राचीन सुखवाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
उत्तर -
प्राचीन सुखवाद की आलोचनात्मक व्याख्या
प्राचीनकाल में भी सुखवाद का समर्थन किया गया है तथा आधुनिक विचारकों ने भी सुखवाद को एक नैतिक सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत किया है। परन्तु प्राचीन सुखवाद तथा आधुनिक सुखवाद में पर्याप्त अन्तर है। प्राचीनकाल में सुखवाद के दो रूप विकसित हुए - (1) सिरेनैक्स का स्थूल सुखवाद (2) एपीक्यूरियन का परिष्कृत सुखवाद।
सिरेनैक्स का स्थूल सुखवाद
सिरेनैक्स के स्थूल सुखवाद का प्रतिपादन एरिस्टीपस ने किया। वह मूलतः सीरीन देश का रहने वाला था। उसने अपने मत के प्रचार के लिए एक केन्द्र स्थापित किया था। इसलिये इस केन्द्र के अनुयायियों को सिरेनैक्स कहा जाने लगा। इसके अतिरिक्त इस सिद्धान्त में सुख की स्थूल रूप में व्याख्या की गयी तथा व्यक्ति के लिए सुख के महत्व को स्वीकार किया गया। अतः एरिस्टीपस के सिद्धान्त को 'स्थूल सुखवाद' (Gross Hedonism) कहा गया।
एरिस्टीपस अपने आप को सुकरात का अनुयायी मानता था परन्तु उसने अपने ही दृष्टिकोण से सुकरात के विचारों की जड़वादी तथा स्थूल सुखावादी व्याख्या प्रस्तुत की थी। एरिस्टीपस ने सुकरात द्वारा वर्णित आनन्द के स्थान पर स्थूल सुखवाद को व्यक्ति के लिए अभीष्ट माना। इस सिद्धान्त में स्वीकार किया गया कि समस्त सुख मूल रूप में एक ही प्रकार के होते हैं अर्थात् सुखों के विभिन्न प्रकारों में किसी प्रकार का गुणात्मक अन्तर नहीं होता। विभिन्न सुखों में केवल तीव्रता तथा स्थायित्व के आधार पर अन्तर किया जाता है। इस आधार को स्वीकार करने के उपरान्त यह स्पष्ट किया गया है कि अधिक तीव्र तथा अधिक स्थायी सुख ही उत्तम है तथा इन्हीं सुखों की प्राप्ति के लिये मनुष्य प्रयास करता है सिरेनैक्स के स्थूल सुखवाद में इन्द्रिय सुखों को विशेष महत्व दिया गया है, अतः इस सिद्धान्त को क्रमशः शुद्ध सुखवाद, इन्द्रिय सुखवाद तथा स्वार्थवादी सुखवाद भी कहा जाता है। इस सिद्धान्त में आत्मिक सुखों की तुलना में शारीरिक सुखों को श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि शारीरिक सुख अधिक तीव्र होते हैं, अतः इनकी प्राप्ति ही व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य है सिरेनैक्स के सुखवाद की व्याख्या सेठ ने इन शब्दों में की है, “वर्तमान को भविष्य के लिए बलिदान करना अनुचित तथा खतरनाक है। वर्तमान हमारा है, भविष्य सम्भवतः कभी न हो। पहले और पीछे देखने का अर्थ जीवन के लक्ष्य को खो देना है उस सुख को खो देना है, जोकि अनिवार्य रूप से वर्तमान की ही वस्तु है। बेपरवाह, विचारहीन, बुद्धि से अविचलित शुद्ध और सरल अनुभूति का जीवन ही सिरेनैक्स का आदर्श है।' इस आधार पर सिरेनैक्स ने स्वीकार किया कि केवल तात्कालिक सुख ही शुभ होते हैं, क्योंकि वर्तमान का ही महत्व है। जो कर्म या व्यवहार व्यक्ति को सुख प्रदान करें, वे शुभ हैं तथा इसके विपरीत जो कर्म या व्यवहार दुःख देते हैं, वे अशुभ हैं।
अपने स्थूल सुखवाद के पक्ष को स्पष्ट करते हुए एरिस्टीपस ने मानव मनोविज्ञान की भी सहायता ली थी। उसका कहना था कि मनुष्य स्वभाव से ही सुख प्राप्ति के लिए प्रयास करता है तथा वह तात्कालिक सुखों को ही महत्व देता है। सुख की प्राप्ति से प्रेरित होकर ही व्यक्ति कर्म करता है। सुख प्राप्ति में व्यक्ति का अनुभव तथा ज्ञान भी सहायक होता है। इस सिद्धान्त के अनुसार, कर्मों का औचित्य उनके प्राप्त होने वाले परिणामों पर निर्भर करता है। अपने आप में कोई कर्म न तो शुभ होता है और न ही अशुभ बल्कि कर्मों के परिणाम ही उन्हें औचित्य या अनौचित्य प्रदान करते हैं। एरिस्टीपस ने स्पष्ट किया था कि यदि किसी सुख से आगे चलकर दुःख प्राप्त होने की सम्भावना हो तो उस सुख को भी त्याग देना चाहिये।
आलोचना - एरिस्टीपस द्वारा प्रतिपादित स्थूल सुखवाद की कटु आलोचना की गयी है। सर्वप्रथम कहा गया है कि सिरेनैक्स का स्थूल सुखवाद जड़वाद पर आधारित है। इस मान्यता के कारण इस सिद्धान्त के आन्तरिक विरोध उत्पन्न हो जाते हैं। इस सिद्धान्त में एक ओर तो अधिक से अधिक सुख भोगने की बात का समर्थन किया गया है तथा दूसरी ओर इस सिद्धान्त में व्यक्ति के लिये आन्तरिक स्वतन्त्रता को आवश्यक माना गया है। इसी प्रकार इस सिद्धान्त में एक ओर उद्वेग तथा उत्तेजनाओं से रहित जीवन को निम्न स्तर का जीवन माना गया है तथा मनुष्य को चिन्तनशून्य जीव मानते हुए इन्द्रिय सुखों को सर्वाधिक महत्व दिया गया है वहीं दूसरी ओर यह भी कहा गया है कि सुख प्राप्ति के लिये बुद्धि एक आवश्यक साधन है। इस प्रकार इस सिद्धान्त में आन्तरिक विरोध है।
एरिस्टीपस के सिद्धान्त की आलोचना करते हुए यह भी कहा गया है कि यह सिद्धान्त नैतिक सन्देहवाद पर आधारित है। इस सिद्धान्त में वर्तमान समाज में सुख भोगने को सर्वाधिक महत्व दिया गया है। मनुष्य एक बौद्धिक प्राणी है वह किसी भी स्थिति में भविष्य की चिन्ता से पूरी तरह मुक्त नहीं हो सकता है। व्यक्ति के लिये शारीरिक सुखों की तुलना में बौद्धिक सुखों का अधिक महत्व है। जहाँ तक तीव्रता एवं स्थायित्व का प्रश्न है इस विषय में स्पष्ट कहा गया है कि शारीरिक सुख मानसिक तथा आध्यात्मिक सुखों की तुलना में तीव्र तो अवश्य हो सकते हैं परन्तु ये सुख स्थायी नहीं होते। आध्यात्मिक या आत्मिक सुख स्थायी होते हैं। इस सिद्धान्त की आलोचना में एक अन्य बात यह कही गयी है कि मनुष्य में स्वभाव से ही स्वार्थ के साथ-साथ परार्थ की भावना पायी जाती है अतः उसके लिये केवल व्यक्तिगत सुख ही अभीष्ट नहीं है। कोई भी विवेकशील मनुष्य सुखों के लिये पशु तुल्य जीवन उत्तम नहीं समझता।
उपरोक्त वर्णित आलोचनाओं को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि सिरेनैक्स का स्थूल सुखवाद का विचार शून्य तथा अपरिमार्जित सिद्धान्त है। यह सिद्धान्त स्वार्थप्रधान, निराशावादी तथा अनैतिक सिद्धान्त भी है।
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